
तिरंगे तरंग यह देख,
आश्चर्यचकित यह रचना है।
रंग चक्र से बना यह,
समूह संगठित संरचना है
क्या सुनाऊं? क्या बताऊं?
मन में मेरे क्या है।
दिव्य ज्योति या कमल कलश है,
कैसी ये? बस कथा है ।
गिनती हैं। अनगिनत मेरे,
भूकन से बना, ये संखा है।
टूटी हैं, जिनकी पंखुड़ियां,
दुख की ये व्यथा है।
सुख दुख के इस कीर्तन में,
संख ध्वनि धमकता है।
धूमिल रंग हैं, अनगिनत जिसमें,
फिर क्यूं मन बहक्ता है।
अजब समस्या, शीतल मन में,
दृग से दृश्य कुछ दिखता है ।
देखना भी न चाहता, तनिक मन मेरा,
फिर क्यों अनल दहकता है।
अनल शीतल विलोम अर्थ है,
बिप्रिथार्थक है, मन मेरा ।
नहीं चाहता, कश्मा काश हो,
ये क्षण भर का जीवन मेरा ।
इस चार दिनों के जीवन में,
बहुत विफल रहा है, पथ मेरा।
कोई तो है इंतेज़ार में,तभी रुका है, पथ मेरा ।।
सृष्टि के निर्माणकर्ता,
ओ भी अब आघाते हैं।
किसे सौंप दिया? भूमंडल !
जो तनिक नहीं, पछताते हैं।
इस भीषण विध्वंश का,
तुम स्वयं ज़िम्मेवार हो।
है सर्वस्य तुम्हारा भूमंडल,
जिसके तुम हक़दार हो।
कुछ कर दो बदलाव यहाँ।
इस वर्ष के आगमन में,
क्या है? तुम्हारा या मेरा ।
हम “भारत परिवार” हैं।
विनीत
राम रंजन कुमार
Welcome to WordPress. This is your first post. Edit or delete it, then start writing!