प्राणवस्तु तो परम पुण्य है।
निश्छल, निर्मल, कोमल भी।
लोभ से परे । ये शीतल हैं।
बिन्दु, प्रारंभ भी । अंत भी ।
तो किस क्षण के लिये, जिये लोभ में ।
क्षण है । परम तरल भी ।
हर क्षण उठते रचना मन में ।
सघन और प्रबल भी ।
ईश्वर की रचना में पलनेवाले,
कर उनकी सम्मान !
समयभक्ति, न तो प्राणभक्ति कर ।
नवभारत ! निर्माण ।
विनीत
राम रंजन कुमार